भारतीय पारंपरिक चिकित्सा को परखने की जरूरत समय पर ?

विकासशील देशों में जिस तरीके से जनसंख्या बढ़ी है 70 सालों में इस तरीके से वहां पर विकास तो हुआ है लेकिन बहुत धीमी गति से और यहां पर एक जनसंख्या विस्फोट हो गया है इसमें कहीं ना कहीं साक्षरता की भी कमी है और जागरूकता की बहुत कमी है इसी के साथ अगर हम बात करें पारंपरिक चिकित्सा की तो विकासशील देशों में एलोपैथिक शिक्षा का प्रचार प्रसार तो बहुत है 


लेकिन इसकी सुविधा ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत कम है जिसके लिए अगर हम बात करें किसी भी देश की पारंपरिक चिकित्सा की तो अगर हम समय रहते हैं  क्योंकि अगर हम बात करें भारत जैसे विकासशील देशों की तो यहां पर मेडिकल जर्नल लेटेस्ट के 2018 के एक अध्ययन के मुताबिक स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता और लोगों तक उनकी पहुंच के मामले में भारत विश्व के 195 देशों में 145 में पायदान पर हैं जबकि भारत 195 देश की सूची में अपने पड़ोसी देश चीन बांग्लादेश श्रीलंका और भूटान आदि देशों से भी पीछे है और 



अगर बात करें विश्व आर्थिक मंच ने 2019 में कहा कि भारत में स्वास्थ्य जीवन प्रत्याशा से संबंधित सूचना में काफी निराशाजनक है भारत 141 देशों के सर्वे में 109 वें स्थान पर हैं वहीं साल 2019 के वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा सूचकांक के अनुसार 195 देशों में भारत 97 स्थान पर है इन्हीं सब मामलों को देखते हुए अगर हम बात करें हमारे यहां स्वास्थ्य क्षेत्र में चिकित्सकों की कमी, सस्ती सेवा कम सुलभ और गुणवत्ता युक्त स्वास्थ्य सुविधाओं तक हमारी पहुंच, उन पर भरोसा और उनकी  कारगरता हमेशा से ही सवालों के घेरे में रहती है और वही भारत सरकार द्वारा 20 नवंबर 2020 को आयुष मंत्रालय के तहत आने वाली भारतीय औषधीय परिषद की ओर से जारी अधिसूचना में कहा गया है कि आयुर्वेद में स्नातकोत्तर स्तर की पढ़ाई करने वाले डॉक्टर भी आप बहुत सारे ऑपरेशन कर सकेंगे जैसे हड्डियों के ऑपरेशन के साथ आंख नाक कान व गले की सर्जरी कर सकेंगे इस अधिनियम के द्वारा आयुष डॉक्टर को कुल 58 तरह की सर्जरी की अनुमति प्रदान की गई है और इस निर्णय को लेकर देशभर के डॉक्टर व स्वास्थ्य विशेषज्ञों के बीच बस छूट गई है 



लेकिन आयुष और एलोपैथिक की पूरी बस में ट्रेडीशनल हीलर्स कहीं नहीं है मतलब पारंपरिक चिकित्सा के द्वारा ठीक करने वाले जो नित नए नुक्से खोजकर लाते हैं और वही भारतीय समाज में जड़ी बूटियों से इलाज की परंपरा पुरानी है हालांकि इसके वैज्ञानिक आधार को लेकर भी बहस होती रहती है भारत में आयुर्वेद का इतिहास 2500 वर्ष पुराना है सुश्रुत संहिता में शल्य व चालक के क्रियाओं का वर्णन किया गया है एलोपैथिक दवाओं का इतिहास 200 साल से भी कम का है और भारत देश में तो पहले मेडिकल कॉलेज की स्थापना 1835 में कोलकाता में हुई थी और अगर हम बात करें तो यह ट्रेडीशनल हीलर्स या पारंपरिक चिकित्सक ही है जो सदियों से अस्पताल व मरीज के बीच में आम भूमिका भारतीय समाज में निभाते आ रहे हैं वहीं अगर हम बात करें भारतीय जनजाति और बहुत सारे ऐसे लोग जो पारंपरिक चिकित्सा को अपनाते आ रहे हैं और

 


जंगल पहाड़ का दुर्गा मेला को में रहते हैं और दूर-दूर से जड़ी बूटियां लाते हैं और  अगर हम बात करें भारत के ग्रामीण क्षेत्रों या दुर्गम पहाड़ी  और हिमालय क्षेत्रों में जहां पर अभी भी आधारभूत स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध नहीं है और यहीं पर यह पारंपरिक चिकित्सक ही लोगों का पारंपरिक इलाज ही आरंभिक तौर पर लोगों का सहारा बनता है और रात्रि में डॉक्टर के जगह दाई की भूमिका या नर्स की भूमिका भी यही लोग निभाते हैं और इन ट्रेडीशनल हीलर्स या पारंपरिक चिकित्सक या आयुर्वेदाचार्य आदि के तौर पर भारत के बहुत सारे समुदायों जैसे- घुमंतु समुदायों में गोंड, चित्तौड़िया,पारदी ,सिंगीवाल, बेदू, कलंदर, भोपा, जोगी, सपेरा इत्यादि शामिल है और आदिवासी समुदायों में मुंरिया,मांडिया , गोंडा, भील प्रमुख है और


 बात करें तो हिमालय राज्यों की तो यहां पर जनजाति समुदाय जौनसारी और लेपचा, भूटिया , नेपाली समुदाय आदि पारंपरिक चिकित्सा या हीलिंग  के काम से जुड़े हैं इन समुदायों के नुक्से भी खास हैं वाद, वादी से लेकर सेक्स की कमजोरी, घटिया बाय, वायरल इनफेक्शन बच्चे के जन्म पर पिलाई जाने वाले जन्म गुड्डी से लेकर बिच्छू और मधुमक्खी के काटने और पेट गैस, बदहजमी, एसिडिटी इत्यादि जैसी दर्जनों बीमारियों और जीवन में होने वाले तनाव का यह इलाज करते हैं यह सारे समुदाय हिमालय क्षेत्र में हरिद्वार सिक्किम के जंगल छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के जंगल नीलगिरी की पहाड़ियों तथा रेगिस्तान के क्षेत्र तथा अरावली श्रंखला से जुड़ी गुड़िया एकत्रित करते हैं और अगर हम बात करें पारंपरिक चिकित्सक के दावों को परखने के लिए कोई नियामक अभी तक क्यों नहीं बनाया जा सका है ? और अगर हम बात कहें तो कहने की यहां पर जरूरत नहीं है कि अंधविश्वास की इसमें कोई जगह नहीं हो सकती, यह ध्यान रखने की जरूरत है की इन उपरोक्त सभी समुदायों की आजीविका भी इससे जुड़ी है!

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