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सोमनाथ मंदिर को 'प्रथम ज्योतिर्लिंग' इसलिए माना जाता है क्योंकि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, यह पृथ्वी पर प्रकट होने वाला सबसे पहला प्रकाश पुंज (ज्योतिर्लिंग) है। 'सोम' का अर्थ है चंद्रमा, और 'नाथ' का अर्थ है स्वामी। अर्थात, वह स्थान जहाँ चंद्रमा ने भगवान शिव को अपना स्वामी मानकर उनकी आराधना की थी।
इसके पीछे की पौराणिक कथा बहुत ही रोचक है:
चंद्रमा (सोम) और 27 नक्षत्रों की कथा
हिंदू पुराणों (विशेषकर शिव पुराण) के अनुसार:
* दक्ष प्रजापति की पुत्रियां: चंद्रमा का विवाह राजा दक्ष की 27 पुत्रियों (जिन्हें हम 27 नक्षत्र कहते हैं) के साथ हुआ था।
* चंद्रमा का पक्षपात: चंद्रमा अपनी सभी पत्नियों में से 'रोहिणी' से सबसे अधिक प्रेम करते थे और बाकी 26 पत्नियों की उपेक्षा करते थे।
* राजा दक्ष का श्राप: जब अन्य पुत्रियों ने अपने पिता दक्ष से अपनी व्यथा सुनाई, तो दक्ष ने चंद्रमा को समझाने की कोशिश की। लेकिन जब चंद्रमा नहीं माने, तो क्रोधित होकर दक्ष ने उन्हें 'क्षय रोग' (Tuberculosis/Waning) का श्राप दे दिया, जिससे उनकी चमक (कांति) धीरे-धीरे खत्म होने लगी।
* शिव की शरण में: अपनी शक्ति और चमक खोते हुए चंद्रमा बहुत व्याकुल हो गए। तब ब्रह्मा जी के परामर्श पर, चंद्रमा प्रभास क्षेत्र (वर्तमान सोमनाथ) में आए और यहाँ भगवान शिव का पार्थिव लिंग बनाकर घोर तपस्या की।
श्राप से मुक्ति और शिव का वरदान
चंद्रमा की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए। चूँकि दक्ष का श्राप पूरी तरह खत्म नहीं किया जा सकता था, इसलिए शिव ने चंद्रमा को बीच का मार्ग दिया:
* पक्षों का निर्माण: शिव के आशीर्वाद से चंद्रमा 15 दिन घटते हैं (कृष्ण पक्ष) और 15 दिन बढ़ते हैं (शुक्ल पक्ष)।
* शिव का निवास: चंद्रमा की प्रार्थना पर भगवान शिव उसी स्थान पर ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हो गए ताकि चंद्रमा के साथ-साथ समस्त भक्तों का कल्याण कर सकें।
सोमनाथ मंदिर की कुछ अनूठी बातें
* सोमेश्वर महादेव: यहाँ शिव को 'सोमेश्वर' कहा जाता है क्योंकि उन्होंने चंद्रमा (सोम) के कष्ट को दूर किया था।
* ऐतिहासिक भव्यता: कहा जाता है कि सबसे पहला मंदिर स्वयं चंद्रमा ने सोने का बनाया था, रावण ने चांदी का, भगवान श्री कृष्ण ने चन्दन की लकड़ी का और भीमदेव ने पत्थर का।
* पुनर्जन्म का प्रतीक: जैसे चंद्रमा घटता और बढ़ता है, वैसे ही सोमनाथ मंदिर ने भी कई बार विनाश और पुनर्निर्माण देखा है, जो इसके कभी न खत्म होने वाले गौरव का प्रतीक है।
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