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उस श्लोक के एक-एक शब्द का गहरा अर्थ निम्न प्रकार है, क्योंकि इसमें प्राचीन भारत का विज्ञान छिपा है।
बाण स्तंभ पर खुदा हुआ श्लोक है:
> "आसमुद्रांत दक्षिण ध्रुव पर्यंत, अबाधित ज्योतिर्मार्ग"
>
इसका शब्द-दर-शब्द विश्लेषण इस प्रकार है:
1. आसमुद्रांत (A-Samudrant)
इसका अर्थ है 'समुद्र के अंत तक'। यहाँ यह सोमनाथ के तट से शुरू होने वाली सीमा को दर्शाता है। यह उस बिंदु को चिह्नित करता है जहाँ से हिंद महासागर का विशाल विस्तार शुरू होता है।
2. दक्षिण ध्रुव पर्यंत (Dakshin Dhruv Paryant)
इसका सीधा और स्पष्ट अर्थ है 'दक्षिण ध्रुव (South Pole) तक'।
* हैरानी की बात: यह शब्द सबसे चौंकाने वाला है क्योंकि आधुनिक विज्ञान कहता है कि दक्षिण ध्रुव (अंटार्कटिका) की खोज बहुत बाद में हुई। लेकिन सोमनाथ के इस प्राचीन स्तंभ पर 'दक्षिण ध्रुव' का स्पष्ट उल्लेख बताता है कि भारतीयों को हज़ारों साल पहले ही पता था कि पृथ्वी के दक्षिण में एक ध्रुव है।
3. अबाधित (Abadhit)
इसका अर्थ है 'बिना किसी बाधा के' या 'Unobstructed'।
* यह दावा करता है कि सोमनाथ से लेकर दक्षिण ध्रुव तक की सीधी रेखा में कोई भी पहाड़, टापू, जंगल या जमीन का टुकड़ा नहीं आता। आज के गूगल अर्थ (Google Earth) और सैटेलाइट मैप्स भी इस बात की शत-प्रतिशत पुष्टि करते हैं।
4. ज्योतिर्मार्ग (Jyotirmay)
जैसा कि हमने चर्चा की, यह 'प्रकाश का मार्ग' है।
* प्राचीन नाविक इसी मार्ग का उपयोग तारों की स्थिति देखकर दिशा तय करने के लिए करते थे। यह सोमनाथ (चंद्रमा के स्वामी) और प्रकाश के बीच के संबंध को भी दर्शाता है।
इस स्तंभ से जुड़ी एक और रोचक बात:
कहा जाता है कि यह स्तंभ सातवीं शताब्दी से भी पहले का है, लेकिन इसे कई बार आक्रमणों के दौरान तोड़ा गया। वर्तमान स्तंभ का निर्माण सरदार वल्लभभाई पटेल के काल में मंदिर के पुनर्निर्माण के समय किया गया था। लेकिन शिलालेख और उस पर लिखी जानकारी हज़ारों साल पुरानी परंपरा से ली गई है।
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